परछावां चल के तेरे राझंना
छाले पै गए हीर दे
हर दर ते, मथे टेके
हर पीर दे
पाटे कपड़े टुरदे-टुरदे
लिरो लिर वे
वेख के हाल मेरा
कलम चक लई फ़कीर ने
असी लड़-लड़ मर जाना
नइ बन दे गुलाम लकीर दे
हुन हदां दी हद मुक गयी
हुन ते रांझा नु हीर दे
परछावां चल के तेरे राझंना
छाले पै गए हीर दे
हर दर ते, मथे टेके
हर पीर दे
पाटे कपड़े टुरदे-टुरदे
लिरो लिर वे
वेख के हाल मेरा
कलम चक लई फ़कीर ने
असी लड़-लड़ मर जाना
नइ बन दे गुलाम लकीर दे
हुन हदां दी हद मुक गयी
हुन ते रांझा नु हीर दे
आते हो मगर यादो में
मिलते हो टुकड़े- टुकड़े वादों में
लूट गयी रियासते गरूर में
इलज़ाम आता है पियादो में
पानी भर गया हड्डियों में
अब ना रहा दम इरादों में
लकोके रखया सी जो वी दिल दे दे रे
सारा हि बोलदा ओने
अड़ गया सी बगैर चाबी तो
ताला खोलदा ओने
नाल खड़ गया नाल ना हो के वी
यारी दा मुल मुड़दा ओने
छिड़कया की मै
ओथे हि दम तोड़दा ओने
धड़कन तुम्हारी , ये दिल तुम्हारा है
मुशकत तुम्हे हो,
मेरा घर-बार तुम्हारा है
दिल की सत्ता पर राज तुम्हारा,
मेरी सरकार ये वयपार तुम्हारा है
अपनी कलम से कर दो दस्तखत
ये कोहरा बदन तुम्हारा है
मेरा मुझ में कुछ ना रहे
सब तुम्हारा, सिर्फ तुम्हारा है
भट्ठी ते बल-बल के
चूल्हे उते सड़-सड़ के
कड़ा निखरेया
हुन साह वी नइ लैहदां
पुरानियां चिठ्ठीयां पड़-पड़ के
सिखर दुपहरी कोठे ते चड़-चड़ के
नइ ओदां तेरा सनेहा
बनेरे ते कां वी नइ बैहदां
लोकां दी गल्लां वीच गल-गल के
ज़माने नाल लड़-लड़ के
हीर तेरी वे जोगिया
चोला ओ लाह वी नइ देहदां
पिछे तेरे मर-मर के
अरदासां तेरीयां कर-कर के
मथे मेरे वट पै गए पैड़या
हाँ वी नइ कैहदां ते ना वि नइ कैहदां
ये भी कोई काम हुआ
चाहतो में बदनाम हुआ
जितना नीचे गिरा वो
उतना बड़ा नाम हुआ
मेरी वफाओं का
धोखा ईनाम हुआ
शराफ़तो के चक्कर मे
हुजूम मे गुमनाम हुआ
पिघलती धूप है वो
मै ढलती श्याम हुआ
दर्द के बाज़ार में
हस-हस कर नीलाम हुआ
कैसा आगाज़ था ये
हाय! कैसा अंजाम हुआ
जान देकर भी
मै ना उसकी जान हुआ
मैंने हसीन मंज़र देखा
हल जोतते हाथों में ख़ंज़र देखा
ये इश्क है की उन्हें खुद के लिए लड़ते देखा
निहत्थी सरकारो को डरते देखा
मैंने हसीन मंज़र देखा
आखिर वक्त है इंसानियत का मैंने दया को मरते देखा
चिंगारी को आग में बदलते देखा
मैंने हसीन मंज़र देखा
बेशर्मी से जो हो रहा है उसे होते हुए देखा
आराम छोड़कर सड़को पर सोते देखा
मैंने हसीन मंज़र देखा
आज़ादी की खातिर
हुक्म टालना पड़ता है
कल मनमरज़ी करने के लिए
आज मन को मारना पड़ता है
बाज़ी इश्क की जीत
के हर बार हारना पड़ता है
खुद का खुद में कुछ ना रहे कुछ
खुद को उसपर वारना पड़ता है
पत्थर है वो
आदत है मेरी बहने की
दिल ही काफी है
ओकात नहीं महलों में रहने की
निकाह कर बैठा हुं तेरी रूह से
हिम्मत नहीं है कहने की
बेहद हो गए हैं सितम उसके
मेरी भी ज़िद्द है सह