Sunday, May 30, 2021

Punjabi nazm

 परछावां चल के तेरे राझंना  

छाले पै  गए हीर दे


हर दर ते, मथे टेके

हर पीर दे


पाटे कपड़े टुरदे-टुरदे 

लिरो लिर वे


वेख के हाल मेरा 

कलम चक लई फ़कीर ने


असी लड़-लड़ मर जाना 

नइ बन दे गुलाम लकीर दे


हुन हदां दी हद मुक गयी 

हुन ते रांझा नु हीर दे





Sunday, April 11, 2021

Nazm

 आते हो मगर यादो में 

मिलते हो टुकड़े- टुकड़े वादों में 


लूट गयी रियासते गरूर में 

इलज़ाम आता है पियादो में 


पानी भर गया हड्डियों में 

अब ना रहा दम इरादों में  

Sunday, April 4, 2021

Punjabi Nazm

 लकोके रखया सी जो वी दिल दे दे रे 

सारा हि बोलदा ओने 


अड़ गया सी बगैर चाबी तो 

ताला खोलदा ओने 


नाल खड़ गया नाल  ना हो के वी

यारी दा मुल मुड़दा ओने 


छिड़कया की मै 

ओथे हि दम तोड़दा ओने 





Sunday, February 28, 2021

Nazm

 धड़कन तुम्हारी , ये दिल तुम्हारा  है 


मुशकत तुम्हे हो, 

मेरा घर-बार तुम्हारा  है


दिल की सत्ता पर राज तुम्हारा, 

मेरी सरकार ये वयपार तुम्हारा  है 


अपनी कलम से कर दो दस्तखत 

ये कोहरा बदन तुम्हारा है 


मेरा मुझ में कुछ ना रहे 

सब तुम्हारा, सिर्फ तुम्हारा है 







Sunday, February 14, 2021

Punjabi nazm

 भट्ठी ते बल-बल के

चूल्हे उते सड़-सड़ के 

कड़ा निखरेया 

हुन साह वी नइ लैहदां 


पुरानियां चिठ्ठीयां पड़-पड़ के

सिखर दुपहरी कोठे ते चड़-चड़ के

नइ ओदां तेरा  सनेहा 

बनेरे ते कां वी नइ बैहदां


लोकां दी गल्लां वीच गल-गल के

ज़माने नाल लड़-लड़ के

हीर तेरी वे जोगिया 

चोला ओ लाह वी नइ देहदां 


पिछे तेरे मर-मर के

अरदासां तेरीयां कर-कर के 

मथे मेरे वट पै गए पैड़या 

हाँ वी नइ कैहदां ते ना वि नइ कैहदां 



Sunday, February 7, 2021

Nazm

 ये  भी कोई काम हुआ

चाहतो में बदनाम हुआ


जितना नीचे गिरा वो

उतना बड़ा नाम हुआ 


मेरी वफाओं का 

धोखा ईनाम हुआ


शराफ़तो के चक्कर मे 

हुजूम मे गुमनाम हुआ 


पिघलती धूप है वो 

मै ढलती श्याम हुआ 


दर्द के बाज़ार में 

हस-हस कर नीलाम हुआ 


कैसा आगाज़ था ये 

हाय! कैसा अंजाम हुआ 


जान देकर भी 

मै ना उसकी जान हुआ 


 



Sunday, January 31, 2021

Kisan

 मैंने हसीन मंज़र  देखा

हल जोतते हाथों  में  ख़ंज़र देखा


ये इश्क है की उन्हें खुद के लिए लड़ते देखा

निहत्थी सरकारो को डरते देखा

मैंने हसीन मंज़र देखा 


आखिर वक्त है इंसानियत का मैंने दया को मरते देखा 

चिंगारी को आग में बदलते देखा 

मैंने हसीन मंज़र देखा


बेशर्मी से जो हो रहा है उसे होते हुए देखा 

आराम छोड़कर सड़को पर सोते देखा

मैंने हसीन मंज़र देखा

Sunday, January 24, 2021

Nazm

 आज़ादी की खातिर 

हुक्म टालना पड़ता है 

 

कल मनमरज़ी करने के लिए 

आज मन को मारना पड़ता है 


बाज़ी इश्क की जीत 

के हर बार हारना पड़ता है 


खुद का खुद में कुछ ना रहे कुछ 

खुद को उसपर वारना पड़ता है 


Saturday, January 16, 2021

Nazm

 पत्थर है वो 

आदत है  मेरी बहने की 


दिल ही काफी है 

ओकात नहीं महलों में रहने की


निकाह कर बैठा हुं तेरी रूह से 

हिम्मत नहीं है कहने की


बेहद हो गए हैं सितम उसके

मेरी भी ज़िद्द है सह