Monday, December 2, 2024

Chamkaur ki GadI

 बैठो और सुनो कथा ये गौर से 

शहादत की खुशबू आती है चमकौर से।  


बड़ी मुश्किल थी वो घड़ी 

जान सभी की आफतो में पड़ी।  


ढक्क्न से फरमान आया था 

माना कफ़न में लिपटा मौत का पैगाम आया था। 


हुकुम था सतगुर को की फौजे छोड़े किला और एक भी सिंह का बाल भी ना होगा बांका 

खायी कसम पाक क़ुरान की पर फरीबो का था कुछ और ही इरादा।  


सोच में पढे गुरु गोविन्द की खुदा की कसम कैसे खाएंगे 

हालातो के आगे मजबूर ाचा ठीक है हम क़िला छोड़ कर जायेंगे।  


गीदड़ो की फौजो  ने सिंघो को घेरा 

आ चूका था सामने भेडियो का चेहरा।  


लाल लालम लाल हो गयी थी सिरसा नदी 

नरसंहार पर चीखती ,रोटी पुकारती।  


नजारा देखकर साहिबज़ादों के खून उफनता चला गया 

और कहा पिता से की अब हमे भी दो आज्ञा।  


क्षणभर भी न कुछ सोचा ना  सुना 

माथे चूमकर किया बेटो को विदा।  


दौड़ रही थी दामिनी तन  में सर पर जूनून सवार था 

ये उन मुठी बंद सिंघो का अपने पंथ के लिए प्यार था।  


अंतिम श्वास तक वो लाडे लाखों को मारकर 

गर्वित हुए गुरु गोविन्द अपने वीर सूत वार कर 


वो अजय ,अमर ,अभय 

इतिहास में सुनेहरो अक्षरों से अपना नाम लिखवा गए।  



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