Sunday, January 5, 2025

Fauji - Ek Parichay

 ना किस मौज में है 

सुना है अब वो फ़ौज में है।  


एड़ियां घिस गयी है उसे मनाते आखिर फौजी बनकर क्या ही फयादा है 

सिपाही की बिसाद तो महज़ प्यादा है।  


पर जनाब के कानो में जूँ तक नहीं रेंगती चल दिए बस देश प्रेम के तमगे टांग कर 

टक -ट्कि लगाकर देखती रही मैया जब वो गए देहलीज़ लांग कर।  


चिट्ठियों में तो बस उसका हस्ता चेहरा दिखता था 

स्वर्ग नाम के नर्क के बारे में वो कहाँ कुछ लिखता था।  


तरक्की देखकर उसकी मैं भी ज़रा इतराने लगा था 

चौपाल में बैठ फौजियों का क़िस्सा सुनाने लगा  था।  


पर ये मोयी ख़ुशी भी कभी एक जगह कहाँ टिकी है 

दर्द के हाथों ये तो कौड़ियों भाव बिकी है।  


ठन्डे चूल्हे पर जलता दूध उफान मार रहा था 

कोई तो बिच्छू था जो अंदर -ही -अंदर काट रहा था।  


दौड़ता -हांफता हुआ आया डाकिया 

सरकारी फरमान में लिपटा कफ़न मुझे थमा दिया।  


गाजे- बाजे संग फौजियों का जमावड़ा चला आया था 

तिरंगे में रंगा तेरा जनाज़ा सजाया था।  


हर कूंचे -चौक -चौबारे सब एक स्वर में गाते थे 

भारत की माँ जय कहकर शहीद की बरात में जुड़ते जाते थे।  


बच्चे -बूड़े -जवान सभी नीर बहाते थे 

सलाम करते थे तुझको शीश निवाते थे।  


आहुति दि है तुमने इस रक्षा अनुष्ठान में 

सीखेंगी पीडियां तुम्हारे अभिप्रेरक प्रतिष्ठान से 


बोया बीज तम्हारा अब फल-फूल रहा है 

आनेवाला कल हमारे इन फौजियों के कंधो पर झूल रहा है।  


खुश हो ना ये जानकर की तुम्हारी जलाई लौ  अब   अग्नि बनती जाती है 

अब हर माँ अपने बेटे को फौजी बनाना चाहती है।  




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