Saturday, September 7, 2024

Meghon Ka Naath

 राक्षस कुल का प्रज्वलित  अंगार 

चर्चा जिसके चरित्र पर हुई नहीं विस्तार। 


कालिख पोत -पोत कर  उसे नहलाया गाया 

अवगुणो की मुहृत उसे दर्शाया गाया।  


बुराई का नाम देकर जिनके पुतले  वर्ष दर वर्ष हम फूंक आते है 

राख समेट -समेट कर क्या सच में उन्हें जान पाते है।  


षटकोटि नमन दामिनी पर सवार  मेघो के नाथ को 

षटकोटि नमन जो टालते नहीं थे पिता की बात को।  


तम के झूलों में झूले वो वारिस अंधकार के 

थर -थर कांपे धरा उनके एक हूंकार से।  


माया के प्रजापति वो दैत्यता में अधीन 

पिता के अभेद्य कवच पितृ मोह में विलीन। 


विश्व ने उन्हें धुतकारा 

जब उनके वार ने लक्ष्मण को मूर्छित कर डाला।  


रण की रज में रौंद  योद्धा घर को आया 

सीने से लगाकर माँ  ने खूब लाड -लड़ाया।  


"अब भी कुछ नहीं बिगड़ा " संधि का प्रस्ताव वो बढ़ाता रहा 

"आम मानुष नहीं है हरी के अवतार " इंद्रजीत पिता को समझाता रहा।  


अफ़सोस की सम्राट अँधा,गूंगा और बहरा हो चूका था 

विवेक अपना खो चूका था।  


चरणों में गिर माँ ने की मिन्नतें , "भगवान के विरुद्ध शास्त्र तू क्यों उठाता है ?"

"क्यों मेरे प्राणो की बाज़ी यूँ तू  लगाता है ?" 


ढांढस देकर  मेघनाथ बोले , "शूरवीर रण से ना मुँह छुपाते है "

मारते है या स्वयं मर कर आते है। " 


ये मेरा कर्म -धर्म इसे मैं निभाऊंगा 

पिता की अवज्ञा कर स्वर्ग में भी पाताल पाऊँगा। 


अब की पारी में लखन खड़े थे मृत्यु को लांग कर 

धनुष पर तना तीर को तान कर।  


बाणो की वर्षा में वीर मयूर बन जाते है. 

तांडव कर मृत्यु का कृपाल बजाते है।  


फिर ऐसा भूचाल हुआ 

प्रलय का हाहाकार हुआ।  


मौन हो गयी वसुधा 

मेघनाथ बेहाल सा  गिरा।  


नींद में वो मंद -मंद मुस्काते थे  

राम, लखन और वानर सेना सभी शीश निवाते  थे।  


 जिन्होंने इंद्र को जीता 

आखिर उनका अंतिम क्षण कैसे बीता।  


कहा यम ने की भले ही तुमने पकड़ा अधर्म का हाथ 

पर अंतिम दम  तक पिता को माना अपना नाथ।  


जय -पराजय तो बात है बाद की 

याद रखेंगी तुम्हे पीडियां तुमने पुत्र की परिभाषा सजा दी।  

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