Monday, September 30, 2024

Prem Ki Paribhasha

 बड़ा तुम इतरा रहे हो 

खुद को बड़ा प्रेमी बता रहे हो।  


बहुत उड़ लिए तुम्हे ज़मीन पर मैं लाती हूँ 

और खंडित कर ढाई अक्षर का मैं पाठ पढ़ाती हूँ।  


रचा प्रथम अध्याय प्रेम का वो पहले से भी पहले थे 

तीनो लोको के आदर्श वो नहले पर दहले थे।  


वर वो जो अनंत अनेका अविनाशी है 

और मरघट का वो वासी है।  


भस्मे रगे, नाग सजे और गले में मुंडो की माला 

चंद्र चूड़ामणि बन श्रृंगार कर जटा से बहती गंगधरा।  


बैठे सिंहासन पर वो बागम्बर 

सहज सरल श्वेत वो बीन कोई आडम्बर।  


हर -हर का आवाहन कर हर संकट टल जाते है 

महादेव के होने भर से निश्चय अटल हो जाते है।  


वधु वो जिससे स्वयं सौंदर्य और सुन्दर हो जाता है 

समक्ष ब्रह्माण्ड शीश निवाता है।  


जो तप में तप रही मनाना उस वैरागी को 

आंख मूँद कर बैठे जो वो परम त्यागी को।  


भगवती संसार कलयाणी है वो  माँ जगदम्बा 

छप्पर वाली काली है वो शेरांवाली माँ अम्बा।  


अर्ध अंग है गौरीसा 

देखा है तुमने प्रेम ऐसा ?


और कुछ आसान नहीं सब तप कर ही पाया है 

ईश्वर का प्रेम भी सदियों बाद सम्पूर्ण हो पाया है।  


अठखेलियां है उनकी भी वो रूठते -मनाते है 

हाँ एक बात है शिव शक्ति अंत तक साथ निभाते हैं।  


पढ़ो पाठ प्रेम का उमा शंकर से 

प्रेम चाहे गहरी लंगन नहीं होता ये क्षण भर से।  


Keep an eye on me


Umbra coils around me, a suffocating embrace.
The more I gasp, the less air I seize.
I swallow my withering breath under fear's bed 
Demoniac doubts dance wildly, and finally, I'm dead 

A sudden pause in their jubilation,
A regretful interruption.

Uninvited, unannounced,
The colossal, burning ball of helium rebound 

Your radiant, infinite hands reached in,
Shaking the cradle where I’d been confined.

The heat stroke, a feathery brush against my skin,
A seismic upheaval awakens within.

My shutters burst asunder, life explodes in every view,
A phoenix rising from the ashes, born anew.

On high alert, her hounds she dispatches,
You become my guardian, my steadfast matches.

The unforgiving, scorching fever pursues them behind her cloak.
The hunter is now the hunted, no escape to invoke.

As I ascended to my feet,
Darkness felt trapped and couldn’t compete.

She tried to expand her dark domain,
But Helios outshone her, a celestial chain.

The treacherous clouds dissipated and vanished,
The sun gleamed brightly, exhilarated.

I knew you wouldn’t silently attend my funeral,
I sensed you had cosmic plans for me, a stellar duel.

Oh, eternal light in the sky,
I bow to you forever, your watchful eye.



Tuesday, September 24, 2024

Humein Bulao

 शुन्य शैया पर सोया सड़ता अँधेरा 

कतरा- कतरा निघलता गहरा -गहरा।  


लाली लालिमा लहु की फूटी 

जब डोर जीवन की टूटी।  


सम्पूर्ण सृष्टि ने संग में हुंकारा 

त्राहि -त्राहि कर माँ शक्ति को पुकारा।  


अश्रु अविरल ैवेघ में उफान मार रहे थे 

और विरोध में खड़ा था पुरुष उसकी बनाई लकीरे जो लांग रहे थे।  


रक्त लीला में रमी वो खुद को रंग रही थी 

आवाहन शक्ति कुछ इस ढंग से कर रही थी।  


आँखों में एक अजीब सी आशा लिए वो दम भर रही थी 

विलुप्त होना चाहती है , वैसे भी जीते जी भी मर ही रही थी।  


बाहों को बड़ा -बड़ा कर वो बनाती पौड़ियाँ 

जो थी पाँव की जुत्तियाँ दो कौड़ियाँ।  


चील सी चीख चीरती हुई सन्नाटे को "माँ !!! तुझे छोड़ सिंहासन आना ही होगा "

कौन है अधिकारी वसुधा आज तुझे बताना ही होगा।  


हम तो लहराती फैसले हैं , हमे दबोचा,उखाड़ा , काटा , कुचला जा रहा है

ये नर स्वयं को त्रिलोकीनाथ बता रहा है।  


इत्रा रहे ये त्रिदेव के अंश सत्ता जो इनके पास है 

अब इन्हे कौन बताये? कौन जगाये ? इनके इष्ट हे देवी के दास है।  


चरम सीमा पर है दरिंदगी , खुल आम फिरती है हैवानो की टोलियाँ 

सजी पड़ी है अर्थियां फूलों की और खाक हो चुकी है डोलियाँ।  


तुम आकर पाट दो पापियों के रक्त से भो को 

तुम ही तो सर्वगुण समपण स्वरुप हो।  


इस दूषित दुनिया में अब और ना रह पाएंगे 

शपथ है तुम्हारी अब और विलम्ब ना सह पाएंगे। 


उन्मुक्त करो हमें माँ शीग्र अति शीग्र तुम चली आओ 

गर आने में हो दिक्कत तो हमे समीप बुलाओ।  

Thursday, September 19, 2024

Sabr Karo Mere Yaar

 कस ली है ना तुमने फंदे की गांठे 

इससे पहले तुम चल बसों सुनते जाओ मेरी बाते।  


मैंने पूरे इतिहास को खंगाला 

और फिर ये निष्कर्ष निकाला।  


इससे भोगना पड़ता है अनंत तक संताप 

आत्मघात है सबसे श्रेष्ठ पाप।  


और तू क्या समझता है सीधा भगवान् के पास पहुँचजायेगा 

मन मर्ज़ी ईश्वर से शिकायत लगाएगा।  


तू तो बस यूँही लटका रहेगा 

ना मिलेगा मोक्ष माया में भटकता रहेगा।  


हां मैं तेरी सभी समस्याएं जानती हूँ 

और तेरी व्यथाओं को पहचानती हूँ। 


कर प्राणो का हरण जब रावण ने प्रहार किया 

क्यों  ना  मोड़ धनुष को राम ने खुद पर हे वार किया? 


क्यों ना बिछाई कृष्णा ने स्वयं की शर शैय्या 

जब छूट गयी नगरी , मुरली, वंश,राधा और मैया।  


जब गुरु नानक के पीछे लोग पत्थर लिए भागे 

क्यों नहीं उन्होंने प्राण वहीं त्यागे।  


जब गोविन्द ने वार दिए थे अपने लाल 

क्यों नहीं उठायी किरपान खुद पर क्या उन्हें नहीं हुआ मलाल ?


अपनों ने ही अपनों पर घात किया 

अब बताओ इनमें से कितनो ने आत्मघात किया ?


तुम्हारी धम्मीयो में बहता  रक्त इनकी ही तो निशानी 

अब बताओ किस बात की परेशानी है ? 


ये ज़रा सी हवाओं से तुम यूँ डोल रहे हो 

"मरना चाहता हूँ मैं " तुम ये बोल रहे हो।  


दीपक हो तुम जो अँधियो में जला करते है 

क्या पर्वत भी लेहरो से डरा करते है ?


दिशाओ दोगे तुम , तुम्हे मार्गदर्शक बनना होगा 

प्रतिनिधि बन सभी का तुम्हे रण में उतरना होगा।  


इस रणभूमि में जो विचलित मन पर विजय पायेगा 

पताका चमकेगा उसी का वो चक्रवती कहलायेगा।  


आशीषो का सावन होगा 

तुम देखना दृश्य बहुत पावन होगा। 


ह्रदय को मजबूत बनाओ 

संकटो के समक्ष दिवार बन तन जाओ। 


अब भी समय मत मानो यूँ हार 

ज़िन्दगी बहुत बड़ी ज़रा सब्र करो मेरे यार।  

Saturday, September 7, 2024

Meghon Ka Naath

 राक्षस कुल का प्रज्वलित  अंगार 

चर्चा जिसके चरित्र पर हुई नहीं विस्तार। 


कालिख पोत -पोत कर  उसे नहलाया गाया 

अवगुणो की मुहृत उसे दर्शाया गाया।  


बुराई का नाम देकर जिनके पुतले  वर्ष दर वर्ष हम फूंक आते है 

राख समेट -समेट कर क्या सच में उन्हें जान पाते है।  


षटकोटि नमन दामिनी पर सवार  मेघो के नाथ को 

षटकोटि नमन जो टालते नहीं थे पिता की बात को।  


तम के झूलों में झूले वो वारिस अंधकार के 

थर -थर कांपे धरा उनके एक हूंकार से।  


माया के प्रजापति वो दैत्यता में अधीन 

पिता के अभेद्य कवच पितृ मोह में विलीन। 


विश्व ने उन्हें धुतकारा 

जब उनके वार ने लक्ष्मण को मूर्छित कर डाला।  


रण की रज में रौंद  योद्धा घर को आया 

सीने से लगाकर माँ  ने खूब लाड -लड़ाया।  


"अब भी कुछ नहीं बिगड़ा " संधि का प्रस्ताव वो बढ़ाता रहा 

"आम मानुष नहीं है हरी के अवतार " इंद्रजीत पिता को समझाता रहा।  


अफ़सोस की सम्राट अँधा,गूंगा और बहरा हो चूका था 

विवेक अपना खो चूका था।  


चरणों में गिर माँ ने की मिन्नतें , "भगवान के विरुद्ध शास्त्र तू क्यों उठाता है ?"

"क्यों मेरे प्राणो की बाज़ी यूँ तू  लगाता है ?" 


ढांढस देकर  मेघनाथ बोले , "शूरवीर रण से ना मुँह छुपाते है "

मारते है या स्वयं मर कर आते है। " 


ये मेरा कर्म -धर्म इसे मैं निभाऊंगा 

पिता की अवज्ञा कर स्वर्ग में भी पाताल पाऊँगा। 


अब की पारी में लखन खड़े थे मृत्यु को लांग कर 

धनुष पर तना तीर को तान कर।  


बाणो की वर्षा में वीर मयूर बन जाते है. 

तांडव कर मृत्यु का कृपाल बजाते है।  


फिर ऐसा भूचाल हुआ 

प्रलय का हाहाकार हुआ।  


मौन हो गयी वसुधा 

मेघनाथ बेहाल सा  गिरा।  


नींद में वो मंद -मंद मुस्काते थे  

राम, लखन और वानर सेना सभी शीश निवाते  थे।  


 जिन्होंने इंद्र को जीता 

आखिर उनका अंतिम क्षण कैसे बीता।  


कहा यम ने की भले ही तुमने पकड़ा अधर्म का हाथ 

पर अंतिम दम  तक पिता को माना अपना नाथ।  


जय -पराजय तो बात है बाद की 

याद रखेंगी तुम्हे पीडियां तुमने पुत्र की परिभाषा सजा दी।