Tuesday, July 3, 2018

Nazm

बादलो के सफर पर निकले थे हम
पर्वतो से टकरा गए
आफतों की आदते थी हमेशा से हे
चमकती रौशनी देखकर गभरा गए
रात खटमल सी काट कर लहू चुस्ती है मेरा
घिसा जब पथरो पर खुद को तो ज़ख्म नरमा गए 

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