बादलो के सफर पर निकले थे हम
पर्वतो से टकरा गए
आफतों की आदते थी हमेशा से हे
चमकती रौशनी देखकर गभरा गए
रात खटमल सी काट कर लहू चुस्ती है मेरा
घिसा जब पथरो पर खुद को तो ज़ख्म नरमा गए
पर्वतो से टकरा गए
आफतों की आदते थी हमेशा से हे
चमकती रौशनी देखकर गभरा गए
रात खटमल सी काट कर लहू चुस्ती है मेरा
घिसा जब पथरो पर खुद को तो ज़ख्म नरमा गए
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