Friday, July 6, 2018

Aa Toh Zara

उक्त चूका हूँ मसरूफ होकर
तू एक बार बुला  तो ज़रा
थक गया हूँ किनारे नाप कर
तू मुझे डूबा तो ज़रा
भुझे हुआ चिराग हूँ एक मुद्दत से
एक बारी चिंगारी भड़का तो ज़रा
राहते बनकर तेरे सुर्ख ज़ख्मो को सेहलाऊँगा
तू करीब आ तो ज़रा
कफ़न बांधे   बैठा हूँ कब से
बस तू मुस्कुरा तो ज़रा
कर लूंगा गरूर खुद पे
तू नज़रे मिला तो ज़रा
बहा दूंगा सियाही तेरा ज़िक्र गढ़कर
तू दूर जा तो ज़रा
हद में इस कदर गुज़र जाऊँगा
तू मझे आज़मा तो ज़रा

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