सपनो की ऊन से आशाओं के स्वेटर बुनते -बुनते
कुछ करने की माला में चाहतों के मोती पिरोते -पिरोते
पुराने जंग लगे शीशे से बदलाव की बातें करते -करते
आसमान से ऊँची अभिलाषा को धुआं देखते-देखते
सोच की उधेड़भुन करते -करते
ये जान लिया की जवानी की किस्मत बूढ़ी उँगलियों सी कमज़ोर हो चुकी है
झुर्रियां पर चुकी है उस जोश में
जो रगों में बहता था कभी
वो बसंत राग नहीं रहा अभी
हज़ार बार टूट- टूट कर बिखरते- बिखरते
खुद को संभालते हुए समझते -समझते
ये जान लिया
पहचान लिया
की खेल -खेल में की गयी गलतियां जीवन का सबक बन जाती
पुष्प का क़त्ल क्यों जब पतछड़ में डालियाँ बिखर जाती
और अश्रु तो बहोत बहाये पर आंख से निकले आंसू वापिस नहीं आते
सप्तश हो गया की
वक़्त हे जीवन का अध्यापक है
उस माथे का
इन हथेलियों का
भाग्य विधाता है !
कुछ करने की माला में चाहतों के मोती पिरोते -पिरोते
पुराने जंग लगे शीशे से बदलाव की बातें करते -करते
आसमान से ऊँची अभिलाषा को धुआं देखते-देखते
सोच की उधेड़भुन करते -करते
ये जान लिया की जवानी की किस्मत बूढ़ी उँगलियों सी कमज़ोर हो चुकी है
झुर्रियां पर चुकी है उस जोश में
जो रगों में बहता था कभी
वो बसंत राग नहीं रहा अभी
हज़ार बार टूट- टूट कर बिखरते- बिखरते
खुद को संभालते हुए समझते -समझते
ये जान लिया
पहचान लिया
की खेल -खेल में की गयी गलतियां जीवन का सबक बन जाती
पुष्प का क़त्ल क्यों जब पतछड़ में डालियाँ बिखर जाती
और अश्रु तो बहोत बहाये पर आंख से निकले आंसू वापिस नहीं आते
सप्तश हो गया की
वक़्त हे जीवन का अध्यापक है
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