Monday, December 25, 2017

Na Kuch Soch Kar

ना कुछ जाने -समझे ,ना कुछ सोच कर 
दिल दे बैठे सब कुछ भूल कर 
लड़ गयी अँखियाँ ऐसे हे कुछ पहले जैसे ना रहा 
जान ली ज़ालिम ने मै कही का नहीं रहा 
ये उसकी दिवानगी थी की मै फिरता था मदहोश होकर 
ना कुछ जाने -समझे ,ना कुछ सोच कर 
दिल दे बैठे सब कुछ भूल कर 
एक उसे पाने के लिए तमाम ख्वाइशें मिटा दी मैंने 
फासले की थी जो दीवारे गिरा दी मैंने 
मैंने की बंदगी हददों को तोड़कर 
ना कुछ जाने -समझे ,ना कुछ सोच कर 
दिल दे बैठे सब कुछ भूल कर 
जो रुकते थे ,मुझे टोकते थे मैंने उनका साथ छोड़ दिया 
उसकी लगन में मस्त मगन मैंने खुद को खो दिया 
परवानो की तरह जलता रहा मै अपनी औकात भूल कर 
ना कुछ जाने -समझे ,ना कुछ सोच कर 
दिल दे बैठे सब कुछ भूल कर 
जब उसके आगे मेरी कीमत घटने लगी 
दरारें सख्त पड़ने लगी 
तभी सरे -आम बिका मै बेइज़्ज़त होकर 
ना कुछ जाने -समझे ,ना कुछ सोच कर 
दिल दे बैठे सब कुछ भूल कर 
उसे कदर ना थी तो ना सही 
मुझे उससे कोई शिकवा नहीं 
मैंने उसे चाहा सुध -बुध खो कर 
ना कुछ जाने -समझे ,ना कुछ सोच कर 
दिल दे बैठे सब कुछ भूल कर 

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