Monday, August 5, 2024

Hind Di Chadar

 सिखों का है बस एक ही असूल 

की पहला मरण कबूल 


जिन्होंने शहादत को परिभाषा दी 

कथा है ये हिन्द दी चादर की 


अपने लिए मरे सो पर वो हो जाते है अमर जो दूजो के लिए लड़े 

नमाज़ो और जनेहु से दूर वो थे बस इंसानियत के साथ खड़े


सताये हुए जो उनके दर पर पहुंचे 

जिनके अस्तित्वे थे सिरफिरे गिद्ध ने नोंचे 


व्यथा सुनाते अपनी वो  रोते - रोते  "हे तेग़ बहादुर राइ ,

हमे बचाओ की अब हमारी लाज पर है बनआयी "


सोच में सभी थे डोले 

चुपी तोड़कर बाल गोविन्द बोले 


"आप सम्भारो इन्हे , आप ही हो पालनहार 

आप ही हो नानक जन की लाज रखो करतार "


ढांढस नहीं उन्होंने हिम्मत थी बड़ाई 

और बेटे की बाते सुनकर पिता की ऑंखें थी भर आयी। 


यहाँ सिंघो का एक जथा तयार हुआ 

और वह दिल्ली में एक पागल कुत्ता खूंखार हुआ 


अपने प्यारे सिंघो संघ श्री तेग बहादुर जी को बंधी बनाया गया 

और औरंगज़ेब के सामने लाया गया।  


वो चेहरों पर चेहरे लगाता रहा 

खुद को खुदा का बंदा बताता रहा 


भेड़िया नज़र आ रहा था भेड़ की खाल में 

छुपा जा रहा था वो झूठ की ढाल में 


वो अँधेरा था उसपर रौशनी का कोई असर न था 

जिन्दा पीर था वो उसे कोई डर न था 


सोचा उसने की लालच तो है बुरी बला लेकिन इस बला से कौन बचा है 

पर  मूरख  था  स्वयं  परमात्मा वो देने लालच चला 


जब नाकाम हो गए आज़माये हथकंडे 

ढोल पीटा उसने बजाये डर के डंडे 


हुक्म जारी किया गया 

इस्लाम या मौत आखरी अवसर दिया गया 


सभी ने सहमति से  ठुकराया 

उबला  खून औरगंजेब और भौखलाया 


बीचो बिच चीर दिया ारियो से भाई मति दास को 

और रोई में लपेट कर जला  दिया भाई सती दास को 


बेशिकन बस वाहे गुरु का नाम उचारा 

और उबाल -उबाल कर भाई दयाला को मारा 


अब बारी थी उस संत फ़क़ीर की 

जिनसे खींची दी थी मानवता की 


अड़िग थे वो अपने निश्चय के पूरे पक्के थे 

देखकर कर ये सभी हक्के -बक्के थे 


एक चौपट राजा ने सभी का जीना मोहाल किया 

हिन्द की खातिर श्री तेग़ बहादुर जी ने शीश कटवा दिया 


 दिल्ली की खून हवाओं में सन्नाटा उथल -पुथल रहा था 

कोई मदमस्त हाथ अंधेर नगर को कुचल रहा था 


इतिहास को हम हर बार हे दोहराएंगे 

तानशाहों के आगे न कभी शीश निवायेंगे 


तुम भी कमज़ोर की दिवार बन जाओ 

और गज क्र फ़तेह बुलाओ!!!


वाहे गुरु जी का खालसा 

वाहे गुरु जी की फ़तेह 




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