Saturday, August 24, 2024

Vardaan Ho

 हे पौरुष अब से हर शक्ति को ये वरदान दो 

अब से हर देवी सीला ,शील ,पत्थर पाषाण हो।  


तुम्हे ारियो -कुल्हारियो से फोड़ा जाये 

और जो बची -कूची हिम्मत है उसे हथोडियों से तोडा जाए।  


तुम्हारे अंश पत्तर-कंकड़ को  भी न आराम मिले 

मसल-मसल कर मिट्टी में हे विराम मिले।  


पुरुष को उत्तम बनाने में तुम्हे हे तराशा जाए 

टक -टकी लगाकर देखो तुम सितम तुमपर बेतहाशा जाए।  


 कुछ इस प्रकार से हो श्रृंगार तुम्हारा 

मौन और बहती अविरल अश्रुधारा।  


तुमपर ऋतुओं का ना कोई असर न हो 

विचलित रहो तुम सदा ही कभी निडर न हो। 


कालिख भरी काल कोठरी में तम्हारी जंग लगी आंखे 

सड़ती लाश सपनो और बाहे तुम्हारी सुखी शाखे।  


हे पौरुष अब से हर शक्ति को यही  वरदान हो

क्यूंकि मैं नहीं चाहती की नारी बस कहने के लिए महान हो।  


ऊब चुकी हूँ मोमबत्तियों से जलती चिताये देख कर 

हार चुकी हूँ निहथि देवी की व्यथाएं देखकर।  


हमे ने हे छीने हैं शक्ति से उसकी खडग, ढाल और भाला 

वार कर स्त्री पर हमने सृष्टि को उजाड़ डाला।  


अब जो असुर विकृति पर चल रहा ये विश्व तो यूँ जीना हे होगा 

इस विष मंथन से निकला हलाहल हमे पीना हे होगा।  


कुकर्म, कुधर्म में पल रहा है आज का मानव 

धित्कार है ये मानव ये है परम दानव।  


ये जो अपने पौरुष में विलीन है 

भूल चूका है की स्वयं शिव शक्ति के आधीन है।  


जब सौम्य गौरी दुर्गा, चामुंडा काली खप्पर वाली बन जाएगी 

 मूली सामान मुंडो को काटती जाएगी। 


प्यास भुझेगी उसकी पापियों के रक्त पान से 

तू क्यों न्योता दे रहा है विनाश को बात सुन मेरी ध्यान से।  


अब से नारी का सम्मान तेरा पहला धर्म होगा 

उसके सपनो को देना उड़ान तेरा  पहला कर्म होगा।  


अगर स्त्री है रूप है देवी का तो तुझे परिचय राम का देना होगा 

संचार कर सृष्टि का तुझे मर्यादा में रहना होगा।  


तू चले जो इस पथ पर तो रास्ते  देंगे पर्वत और अस्समान झुक जायेंगे 

गर होगा विफल तू सारथि स्वयं भगवन बन जायेंगे।  


हे पौरुष अब से किसी नारी को ना ये वरदान हो 

अब से ना कोई देवी शील,पत्थर ,पाषाण हो।  






  

Tuesday, August 20, 2024

Rona Ravan Ka

 सुना है वो आया है 

जो देवी को हर कर लाया है 

साम -दाम -ढंड -भेद करके भी 

उसकी परछाई को भी न छू पाया है।  


ये बाते जब रावण का कानो में पड़ी 

मच गयी फिर खलबली 

पिघले पर्वत आँखों से और बहने लगी अश्रुधारा 

त्राहि -त्राहि कर उसने तीनो लोको को पुकारा।  


हाँ -हाँ मैं सब मानता हूँ 

अपने पाप को बाखुभी पहचानता हूँ 

लोभ मेरा सार्थी था अंधेरो पर मैंने राज किया 

अपने पंजो से नोच -नोच कर अपने भाई का राज पाठ हङप लिया।  


वासना की बातो में आकर मैंने खुद को यूँ बदनाम किया 

स्त्रीयो का मैंने अपमान किया। 

गुनाहो का देवता हूँ मैं , झूठ की मैं मुहृत हूँ 

गिद्ध चिथड़े कर गए है जिनकी लाश से भी बत्सुरत हूँ। 


लेकिन उनका क्या जो राम की मौखटे लगाते है 

राम -नाम की आड़ लेकर ना जाने कितने अपराध छुपाते हैं

आजकल रावण ही रावण को जलाते है।  


याद रहे मैं वहीं हूँ जिसने शीश काट-काट कर शिव को मनाया था 

चहुवेद का ज्ञान जिसकी रग -रग में समाया है।  

अंतिम श्वास में लक्ष्मण का पाठ पढ़ाया 

और जिसे तारने स्वयं हरी ने अवतार लिया आया था।  


आज अपने अंतर्मन में झांको 

तोल -मोल  कर देखो कितने राम और रावण हो ज़रा खुद को नापो।  





Monday, August 5, 2024

Hind Di Chadar

 सिखों का है बस एक ही असूल 

की पहला मरण कबूल 


जिन्होंने शहादत को परिभाषा दी 

कथा है ये हिन्द दी चादर की 


अपने लिए मरे सो पर वो हो जाते है अमर जो दूजो के लिए लड़े 

नमाज़ो और जनेहु से दूर वो थे बस इंसानियत के साथ खड़े


सताये हुए जो उनके दर पर पहुंचे 

जिनके अस्तित्वे थे सिरफिरे गिद्ध ने नोंचे 


व्यथा सुनाते अपनी वो  रोते - रोते  "हे तेग़ बहादुर राइ ,

हमे बचाओ की अब हमारी लाज पर है बनआयी "


सोच में सभी थे डोले 

चुपी तोड़कर बाल गोविन्द बोले 


"आप सम्भारो इन्हे , आप ही हो पालनहार 

आप ही हो नानक जन की लाज रखो करतार "


ढांढस नहीं उन्होंने हिम्मत थी बड़ाई 

और बेटे की बाते सुनकर पिता की ऑंखें थी भर आयी। 


यहाँ सिंघो का एक जथा तयार हुआ 

और वह दिल्ली में एक पागल कुत्ता खूंखार हुआ 


अपने प्यारे सिंघो संघ श्री तेग बहादुर जी को बंधी बनाया गया 

और औरंगज़ेब के सामने लाया गया।  


वो चेहरों पर चेहरे लगाता रहा 

खुद को खुदा का बंदा बताता रहा 


भेड़िया नज़र आ रहा था भेड़ की खाल में 

छुपा जा रहा था वो झूठ की ढाल में 


वो अँधेरा था उसपर रौशनी का कोई असर न था 

जिन्दा पीर था वो उसे कोई डर न था 


सोचा उसने की लालच तो है बुरी बला लेकिन इस बला से कौन बचा है 

पर  मूरख  था  स्वयं  परमात्मा वो देने लालच चला 


जब नाकाम हो गए आज़माये हथकंडे 

ढोल पीटा उसने बजाये डर के डंडे 


हुक्म जारी किया गया 

इस्लाम या मौत आखरी अवसर दिया गया 


सभी ने सहमति से  ठुकराया 

उबला  खून औरगंजेब और भौखलाया 


बीचो बिच चीर दिया ारियो से भाई मति दास को 

और रोई में लपेट कर जला  दिया भाई सती दास को 


बेशिकन बस वाहे गुरु का नाम उचारा 

और उबाल -उबाल कर भाई दयाला को मारा 


अब बारी थी उस संत फ़क़ीर की 

जिनसे खींची दी थी मानवता की 


अड़िग थे वो अपने निश्चय के पूरे पक्के थे 

देखकर कर ये सभी हक्के -बक्के थे 


एक चौपट राजा ने सभी का जीना मोहाल किया 

हिन्द की खातिर श्री तेग़ बहादुर जी ने शीश कटवा दिया 


 दिल्ली की खून हवाओं में सन्नाटा उथल -पुथल रहा था 

कोई मदमस्त हाथ अंधेर नगर को कुचल रहा था 


इतिहास को हम हर बार हे दोहराएंगे 

तानशाहों के आगे न कभी शीश निवायेंगे 


तुम भी कमज़ोर की दिवार बन जाओ 

और गज क्र फ़तेह बुलाओ!!!


वाहे गुरु जी का खालसा 

वाहे गुरु जी की फ़तेह