टूटता है बदन जब तकिये पर गिरता है
करवटे बदल -बदल कर खोजते है खवाबो को
आखिर तनहा जो रहता है।
दबे पांव छुपते -छुपाते आती है नींद
क्यूंकि बेख्याली और उलझे हुए ज़हन का पहरा जो रहता है।
ठंडा बिस्तर, तह हुई चादरे ,
बेजान परदे और एक वो है जो हर रात को मात देता है।
माँ की कोख से २४ पहर की रह गयी है नींद
और वो शौरतो को इज़हाफा कहता है।
दिन को धोखे देने में मुकम्मल है वो
बस रात के जाल में जकड़ा रहता है।
और जो कहीं झांक ले भोज चिड़ड़ाहट -थकावट का
तो हंस कर उम्र का तकाज़ा कहता है।
और जो कोई पूछ ले हाल उसका
तो मै ठीक हूँ , मै ठीक हूँ कह कर टाल देता है।
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