Saturday, November 23, 2019

Wo Kahan Hai

वो कहाँ है जो मुझे अपना अज़ीज़ बताती थी 
वो कहाँ है जो  मुझसे कुछ नहीं छुपाती थी 
हर हाल में जो मेरे साथ खडी थी 
हिम्मत बनकर मेरे जूनून के लये लड़ी थी 
उन रास्तो को मैं पीछे छोड़ आया हूँ 
फ़रेबियो से मै मुँह मोड़ आया हूँ 
अब जो वो मुझसे रूठ गयी है 
खींचती हुई से ये दूर टूट गयी ही 
कैद है वो मेरे ज़ेहन में ,हर पल में 
वो आज में है मेरे कल में 
गैरो के रिश्तो में खुद को खोया करता हूँ 
तुम्हे क्या मालूम मै किस कदर रोया करता हूँ 
कभी किया था हालातो को मजबूर हमने ,आज खुद हालातो के आगे मजबूर है 
किसी है ये कश्मकश की पास होकर भी कितने दूर है 
तुम नहीं हो ! नहीं हो ! ये आइना मुझे कहता है 
पर इस बच्चे से दिल का क्या करू जो तेरी धुन में रहता है 
मेरे सब्र के बांध टूटने लगे है 
लौट आओ तुम की नामकीनियत के झरने फूटने लगे है 

Monday, October 21, 2019

Ek Mulakaat Ghum se

एक वो कोने में मुँह लटकाये बैठे है
और एक वो है जो शिकवे में ैथे है
चारो कोने चित है ,हिम्मत भी यु हारी है
अब जो जीते है तो इनाम में क्या पाएंगे
मझे बदनसीब से ना जाने क्या -क्या छीन ले जायेंगे
हमनवा जो बेवफा ,साथी भी साथ छोड़ गए है
अकेला हु मै ,ग़म मझे झिंझोड़ गए है
अब छुपी साधे ज़ख्मो को सी रहा हु
नामकीनियत के घूँट पी रहा हु
तम्हे क्या मालूम किस कदर जी रहा हु

Friday, October 4, 2019

Hasya Kavita Anghutha

नेताजी जैसे हे मंच पर विराजे
कानो में पड़ी फुसफुसाहट की आवाज़े
नेता पाखंडी है ,झूठ का पुलिंदा है
इसलिए तो राजनीती में ज़िंदा है
तन का चाहे गोरा
मन मगर काला है
देखो तो पेट मानो गेहूं का बोरा है

ये सुनकर नेताजी का हिल गया जिया
भाषण यही से शुरू किया
आपकी एक भी बात ठीक नहीं है
ये तोंद तो राष्ट्रीय एकता की प्रतिक है
चीनी ,यूरिया या चारा जो कुछ भी खाते है
सब यहीं  तो पचाते है
जब विदेशो में बनकर जाते है राजा
इस तोंद का घेरा नापकर लगाया जाता है
देश की  सेहत का अंदाज़ा
और कौन कहा हम झूठे है
हमारी सच्चाई के तो किस्से अनूठे है
ज़रा करो तो याद
पिछले आकाल के बाद
क्या जनता के दर्द को हम ने अपना मान कर नहीं सहा था
क्या  ये नहीं कहा था
जो कुछ भी रुखा-सूखा है सब तम्हारा हे तो है भाई
क्यूंकि हम तो केवल खाते है मखन और मलाई
तभी ऑटोग्राफ बुक हाथ में लिए
मंच पर चढ़ आया बालक एक
और  नेताजी ने दीया अंगूठा टेक
ये देखकर लोग हसे
नेताजी को लगा अब तो फसे
मन हे मन दी किस्मत को गाली
भाषण में यूँ बात संभाली
देखकर अंगूठा छाप ऑटोग्राफ
आप थोड़े हे करेंगे हमको माफ़
कहेंगे नहीं तो सोचेंगे ज़रूर
धित्कार है (३)
शिक्षा मंत्री अनपढ़ गवार है
तो सुनो हम अनपढ़ नहीं है
आठवीं की छमाही परीक्षा दिए है
यानी की आधे से ज्यादा बी ऐ है
विश्वास कीजिये हम भी आपके हे सरीखे है
पूरा गिरधारी लाल लिखना सीखे है
हम तो फिर भी अपना काम निकालते है
दूसरे मंत्रियो के अंघूठे भी उनके सेक्रेटरी संभालते है
हम तो सिर्फ आपको अपना अंगूठा दिखाते है
कई लोग तो आपको उंगलियों पर नचाते है
  आप क्यों हमे बेगाना मानने पर अड़े है
अब एहि देख लीजिये आप आराम से बैठे है और हम कितनी देर से खड़े है
एक श्रोता बोला  -
आप सच मुच में महान है थोड़ा और महान हो जायेय
इंसान से उठकर भगवन हो जाएए
कृपा कर अंतर्ध्यान हो जाएये





Wednesday, October 2, 2019

Mat Nikalana Ghar se

मत निकलना घर से की बाहर पहरा है
फासले रहे यूँही इसलिए यहाँ अँधेरा है
फसा लेगा वो,वो नज़रें नहीं सपेरा है

बस्ता था जिस बस्ती में कभी अब कोई और रह रहा है
गुनाह से रंग कर खुद को मुझे बेवफा कह रहा है
एक मुद्दत से रुका था वो ,देखो कैसे बेसब्र से बह रहा है
डूब ना जाना इस सागर में की ये राज़ गहरा है

Saturday, September 14, 2019

Duniya

 सौदा मुनाफा का हो तो नाज़ करती है ये दुनिया
क्या कहूं कितना परेशां करती है ये दुनिया

तोड़ दी गुलुक
तोड़ दिया दिल  भी
हद है की अश्क़ो का सौदा करती है ये दुनिया

मेरा वजूद कोई मुकर्रर  तो नहीं इस हुजूम में
फिर भो बदनाम करती है ये दुनिया

एक वो गया है नींदे हराम कर के
दूजा जीना हराम करती है  दुनिया 

Sunday, August 4, 2019

Dost

देखो मै कैसे पक गया हु
बिन तेरे थक गया हु
हालात भी हमसे हार गए थे,वो ऐसे मेरे लिए  अड़ी  थी
क्या कुछ मै कर बैठु ,एक वही थी जो मेरे लिए  लड़ी थी
 तेरी  नाराज़गी  है  की किस्मत ने मेरी मुझसे मुँह फेर लिया है
क्या कहु कितनी दिक्कतों ने मुझे घेर लिया है
तू जो मुझसे रूठ गयी है
मेरी जीने की आरज़ू छूट गयी है
खुद हे सजा देता हु ,खुद हे कोसता हु
तुझे क्या मालूम किस कदर रोता हु
देर हो चुकी है बहुत ,कब से कर रहा हु तेरा इंतज़ार
अब तो मान जा ना मेरे यार

Saturday, July 27, 2019

एक वो चला गया है मुझे छोड़कर
सब वादे -इरादे झूठे है
नहीं हु लायक मैं शिकवों के भी
मेरे अज़ीज़ मुझसे रूठे है
अब मत कहना जन्मदिन मुबारक
यहाँ साज़ ऐ दिल टूटे है 

Wednesday, July 3, 2019

आखिरकर उन पुराने क़िस्सों को गड रहा हु
तुम तो चले गए हो
कहने के लये हे सही पर आगे बड़ रहा हु 

Saturday, June 29, 2019

Akela

पुराने कुर्ते सा फट गया हु
बिन कैंची के ही कट गया हु
देखो  ना कितना अकेला पड़ गया हु
हसकर रो गया हु
ज़िक्र होते हे तेरा खो गया हु
देखो  ना कितना अकेला पड़ गया हु
साँस ले रहा हु मगर मर गया हु
सुकून है अंधेरो में ,रोशिनियो  से कुछ दर गया हु
देखो  ना कितना अकेला पड़ गया हु
ये आपा-धापी में फस गया हु
टूटे हुए घर सा बस गया हु
देखो  ना कितना अकेला पड़ गया हु
तेरी यादो में थक गया हु
जगरातों में पक गया हु
देखो  ना कितना अकेला पड़ गया हु
की जब तन्हाई भी साथ मेरा छोड़ गयी है
परछाई मझसे मुँह मोड़ गयी है

मैले पानी सा सड़ गया हु
करो कुछ तो रेहम आखिर कितना अकेला पड़ गया हु



Sunday, May 12, 2019

Ma...

उमीदे उसकी मेरी हथेलियों में साँस लेती है
बिखरने लगता हूँ जब वो मुझे बांध लेती है
लड़खड़ाते है जो कदम वो मुझे संभाल  लेती है
टूटने नहीं देती वो रहती है सहारा बनकर
अल्हड नदी सा बेहता हु मै ,वो थाम लेती है किनारा बनकर

लम्हो की सियासतों में धक्के खा रहा हु
मुझे माफ़ करना माँ  की तुझे वक़्त नहीं दे पा रहा हु। ...

Thursday, March 21, 2019

The Less I Speak

The less i speak,
the more i hear
the less i speak
the less i explain
the less i speak
the more it pains
let it pain
let it be
the less i speak
the more you read
my eyes,narrating untold tales
witness me burn
breaking down,shattering into salinity
the less i speak
the more i see,clearly

Tuesday, March 12, 2019

Waqt ki Baat


ये जो मुझे छूकर गुज़रा
ये गुज़रा हुआ वक़्त है
चार कदम क्या चला मै
मेरी पहुँच से आगे तैनात मेरा वक़्त है
जिसे छोड़कर आया था मैं  पीछे कही
वो साथ है अब भी ,केसा गजब वक़्त है
सितम देख तू ,बेगुनाह पर है इलज़ाम सभी
मत पूछ कितना बुरा वक़्त है
शौहरते हूँ मुबारक मुझे
ये मेरा वक़्त  है

Thursday, February 14, 2019

Prayas Karke Baitha hai...

जिस राह की है मंज़िल तू 
उसे तीर्थ धाम कर के बैठा है 
याद रहे तू हमेशा ही ,हरदम 
खुद को ये काम देकर बैठा है 
इबादते है बेकार उसके लिए 
तुझे जाप्ता है ,तेरा नाम रटकर बैठा है 
तेरे इम्तहान की है कदर उसे 
जो आस पर बैठा है 
लालम लाल है नज़रे उसकी 
जो नींदे हराम कर के बैठा है 
जान छिड़कती है हज़ारो उसकी हैसियत पे 
एक वो है जो तुझ पर मर बैठा है 
दैयारों का मौहताज नहीं वो 
जो अपनी हद लांग बैठा है 
खुद खुदा भी है शर्मिंदा 
जो हर दुआ में तुझे मांग बैठा है 
कोई कसार नहीं है बाकी 
वो जो प्रयास कर के बैठा है