Wednesday, October 2, 2019

Mat Nikalana Ghar se

मत निकलना घर से की बाहर पहरा है
फासले रहे यूँही इसलिए यहाँ अँधेरा है
फसा लेगा वो,वो नज़रें नहीं सपेरा है

बस्ता था जिस बस्ती में कभी अब कोई और रह रहा है
गुनाह से रंग कर खुद को मुझे बेवफा कह रहा है
एक मुद्दत से रुका था वो ,देखो कैसे बेसब्र से बह रहा है
डूब ना जाना इस सागर में की ये राज़ गहरा है

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