मत निकलना घर से की बाहर पहरा है
फासले रहे यूँही इसलिए यहाँ अँधेरा है
फसा लेगा वो,वो नज़रें नहीं सपेरा है
बस्ता था जिस बस्ती में कभी अब कोई और रह रहा है
गुनाह से रंग कर खुद को मुझे बेवफा कह रहा है
एक मुद्दत से रुका था वो ,देखो कैसे बेसब्र से बह रहा है
डूब ना जाना इस सागर में की ये राज़ गहरा है
फासले रहे यूँही इसलिए यहाँ अँधेरा है
फसा लेगा वो,वो नज़रें नहीं सपेरा है
बस्ता था जिस बस्ती में कभी अब कोई और रह रहा है
गुनाह से रंग कर खुद को मुझे बेवफा कह रहा है
एक मुद्दत से रुका था वो ,देखो कैसे बेसब्र से बह रहा है
डूब ना जाना इस सागर में की ये राज़ गहरा है
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