Tuesday, July 4, 2017

Khol ke Dil ke Dard

मसरूफ होता हूँ तो हसना हसाना पड़ता है
कामभाल उड़कर दिल के दर्द को छुपाना पड़ता है
फुर्सत मिले जो पल दो पल की
तो चार आंसू बहा लिया  करता हूँ
तकलीफो को दिलासे दे लिया करता हूँ
और क्या करूँ, किसे कहूं
पर छुपकर से रात के कान में फुसफलाया करता हूँ
मरहम उन  कभी ना  वाले ज़ख्मो पर लगा लिया करता हूँ
मैं अपने बेहाल दिल को बहलाया लिया करता हूँ
मौखटे को पहनकर सभी के सामने नकली रहना पड़ता है
उस नकलियत के रिश्तो से अपना दामन छोड़ा लिया करता हूँ
तन्हाई में घूम का जश्न मन लिया करता हूँ।

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