राम -नाम की सरिता में केवल हनुमन्त बहते है
जहाँ -जहाँ पग पड़े राम के ,
वहीं हनुमंत रहते है।
स्वयं की स्तुति में बंधे नहीं है , जय सिया राम ही कहते है
अहम् -क्रोध का बोध नहीं है
कोई शोभ नहीं ,कोई लोभ नहीं है
श्वेत आत्मा है वो उनसे डर भी डर कर रहते है।
निर्बल को वो बल हैं देते
हर मुश्किल का हल वो देते
होने से उनके संकट संकट नहीं रहते है।
अञ्जनजए हैं वो केसरी नन्दन माँ जानकी के दुलारे है
हर श्वास में राम -राम वो राम को भजने वाले है
और राम बसे है हम सब में लेकिन एक वो है जो राम में बसने वाले है
पर अपना परिचय बस राम भक्त ही कहते है
विपदा काल में बन पहाड़ तन जाते है
हैं असीम अनंत आकाश है , अपनी ऊंचाई कहाँ नाप पाते है
राम में खोते है खुद को वो राम में खुद को पाते है
राम में रमे -रमे वो राम रंग में रहते है।
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