सफ़र बेसब्री का कटेगा नहीं
अब दर्द मुझसे बांटेगा नहीं
मुद्दत हो गई राह तकते
नज़रों का खालीपन छंटेगा नहीं
सहरा पर है नाम लिखा
मुकर्रर है वो मिटेगा नहीं
अड़ियल है जो दिल से
यु हटेगा नहीं
ये भी सच है कि खिलाफ़ हमारे
वो डटेगा नहीं
इज़्ज़तो का पैमाना है
अब घटेगा नही
बचा लो दामन इस रोग
से कोई बचेगा नहीं
तोहमते कसेगे ज़माने वाले
तु साथ मेरे जचेगा नहीं
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