दुर रहो इश्क से ये एक बुरी बला है
टालते-टालते रह गया पर ये सवाल कहाँ चला है
सुख गए लफ्ज़ मेरे
खुश्क गला है
चाँदनी में धुली है वो
सूरज से उबटन मला है
मुद्दत से कैद है
ये वक़्त का आँसु कहाँ ढला है
अब भी है वक़्त की रूक कर सजदे कर लो
तेरे कुचे से वफ़ा का जनाज़ा चला है
बेकदरो पर क्यो है इलज़ाम
जनाब दिल तोड़ना भी एक कला है