बात थी वो किसी इतवार कि
दिखी थी जब मुझे पहली बार थी
पहली पौड़ी थी वो प्यार की
वो गली थी मेरे यार की
किसी रोज़ जब नज़रे टकराई थी
शर्म से लाल था मैं, मेरी शामत आई थी
ढिबबे में जो हलवा लाई थी
बात थी ये पहले इजहार की
वो गली थी मेरे यार की
चंद कदमो से शुरू हुई थी
ये कहानी जो हमने पिरोइ थी
याद है कब हसी थी वो कब रोईं थीं
आज भी तरसी है वो कमीज़ तेरे दि दार की
वो गली थी मेरे यार की
हक समझकर जब अंजान ने रखा था हाथ
तिलमिला उठा मैं दिखा दी थी उसे औकात
गजब सी हिम्मत थी मुझ में जब वो होती थी मेरे साथ
गले लगाकर करती शुक्रिया थी
वो गली थी मेरे यार की
उठने लगी उँगलीया ,बरसने लगे सवाल
क्या बताऊँ कैसा मचा था बवाल
अःच नहीं आने दी उसने बनकर मेरी ढाल
अपने प्रेम पर कायम वो बरकरार थी
वो गली थी मेरे यार की
Strong writing
ReplyDeletethank you so much anon
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