Saturday, October 10, 2020

Gali thi Mere Yaar Ki

बात थी वो किसी इतवार  कि 

दिखी थी जब मुझे पहली बार थी 

पहली पौड़ी थी वो प्यार  की 

वो गली थी मेरे यार की 


किसी रोज़ जब नज़रे टकराई थी 

शर्म से लाल था मैं, मेरी शामत आई थी 

ढिबबे में जो हलवा  लाई  थी 

बात थी ये पहले इजहार की

वो गली थी मेरे यार की 


चंद कदमो से शुरू हुई थी 

ये कहानी जो हमने पिरोइ थी 

याद है कब हसी थी वो कब रोईं थीं 

आज भी तरसी है वो कमीज़ तेरे दि दार की

वो गली थी मेरे यार की 


हक समझकर जब अंजान  ने रखा था हाथ

तिलमिला उठा मैं दिखा दी थी उसे औकात 

गजब सी हिम्मत थी मुझ में जब वो होती थी मेरे साथ 

गले लगाकर करती शुक्रिया थी 

वो गली थी मेरे यार की 


उठने लगी उँगलीया ,बरसने लगे  सवाल 

क्या बताऊँ कैसा मचा था बवाल 

अःच नहीं आने दी उसने बनकर मेरी ढाल 

अपने प्रेम पर कायम  वो बरकरार थी 

वो गली थी मेरे यार की