Monday, October 21, 2019

Ek Mulakaat Ghum se

एक वो कोने में मुँह लटकाये बैठे है
और एक वो है जो शिकवे में ैथे है
चारो कोने चित है ,हिम्मत भी यु हारी है
अब जो जीते है तो इनाम में क्या पाएंगे
मझे बदनसीब से ना जाने क्या -क्या छीन ले जायेंगे
हमनवा जो बेवफा ,साथी भी साथ छोड़ गए है
अकेला हु मै ,ग़म मझे झिंझोड़ गए है
अब छुपी साधे ज़ख्मो को सी रहा हु
नामकीनियत के घूँट पी रहा हु
तम्हे क्या मालूम किस कदर जी रहा हु

Friday, October 4, 2019

Hasya Kavita Anghutha

नेताजी जैसे हे मंच पर विराजे
कानो में पड़ी फुसफुसाहट की आवाज़े
नेता पाखंडी है ,झूठ का पुलिंदा है
इसलिए तो राजनीती में ज़िंदा है
तन का चाहे गोरा
मन मगर काला है
देखो तो पेट मानो गेहूं का बोरा है

ये सुनकर नेताजी का हिल गया जिया
भाषण यही से शुरू किया
आपकी एक भी बात ठीक नहीं है
ये तोंद तो राष्ट्रीय एकता की प्रतिक है
चीनी ,यूरिया या चारा जो कुछ भी खाते है
सब यहीं  तो पचाते है
जब विदेशो में बनकर जाते है राजा
इस तोंद का घेरा नापकर लगाया जाता है
देश की  सेहत का अंदाज़ा
और कौन कहा हम झूठे है
हमारी सच्चाई के तो किस्से अनूठे है
ज़रा करो तो याद
पिछले आकाल के बाद
क्या जनता के दर्द को हम ने अपना मान कर नहीं सहा था
क्या  ये नहीं कहा था
जो कुछ भी रुखा-सूखा है सब तम्हारा हे तो है भाई
क्यूंकि हम तो केवल खाते है मखन और मलाई
तभी ऑटोग्राफ बुक हाथ में लिए
मंच पर चढ़ आया बालक एक
और  नेताजी ने दीया अंगूठा टेक
ये देखकर लोग हसे
नेताजी को लगा अब तो फसे
मन हे मन दी किस्मत को गाली
भाषण में यूँ बात संभाली
देखकर अंगूठा छाप ऑटोग्राफ
आप थोड़े हे करेंगे हमको माफ़
कहेंगे नहीं तो सोचेंगे ज़रूर
धित्कार है (३)
शिक्षा मंत्री अनपढ़ गवार है
तो सुनो हम अनपढ़ नहीं है
आठवीं की छमाही परीक्षा दिए है
यानी की आधे से ज्यादा बी ऐ है
विश्वास कीजिये हम भी आपके हे सरीखे है
पूरा गिरधारी लाल लिखना सीखे है
हम तो फिर भी अपना काम निकालते है
दूसरे मंत्रियो के अंघूठे भी उनके सेक्रेटरी संभालते है
हम तो सिर्फ आपको अपना अंगूठा दिखाते है
कई लोग तो आपको उंगलियों पर नचाते है
  आप क्यों हमे बेगाना मानने पर अड़े है
अब एहि देख लीजिये आप आराम से बैठे है और हम कितनी देर से खड़े है
एक श्रोता बोला  -
आप सच मुच में महान है थोड़ा और महान हो जायेय
इंसान से उठकर भगवन हो जाएए
कृपा कर अंतर्ध्यान हो जाएये





Wednesday, October 2, 2019

Mat Nikalana Ghar se

मत निकलना घर से की बाहर पहरा है
फासले रहे यूँही इसलिए यहाँ अँधेरा है
फसा लेगा वो,वो नज़रें नहीं सपेरा है

बस्ता था जिस बस्ती में कभी अब कोई और रह रहा है
गुनाह से रंग कर खुद को मुझे बेवफा कह रहा है
एक मुद्दत से रुका था वो ,देखो कैसे बेसब्र से बह रहा है
डूब ना जाना इस सागर में की ये राज़ गहरा है