Wednesday, October 25, 2017

Adat

मैं कहाँ से हिम्मत करूँगा
की मुझे तो डरने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से लडूंगा
की मुझे तो भागने की आदत हो गयी है
 मैं कहाँ से कुछ कहूंगा
कुछ बोलने लायक छोड़ा भी है
की मुझे तो चुप रहने की आदत हो गयी है

मैं कौन से कल की उम्मीद में पलूँगा
की मुझे तो हारने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से जीऊँगा
की मुझे तो मरने की आदत हो गयी है



Thursday, October 19, 2017

Mere Ghar Ki Diwali

घर  में मेरे दिवाली कहाँ मनाई जाती है,
यहाँ जग -मग करती लड़ियों की जगह मकड़ियां पश्मीना
से सूनी दीवारों को सजाती हैं ,
मेहनत कर, दिन भर
थकी हारी चींटियां घर की ओर जाती हैं,
घर में मेरे दिवाली कहाँ मनाई जाती है,

एक है जो किसी की भी नहीं सुनती है ,
ख़ामोशी अपना राग अलापा करती है,
और जो ज़ुर्रत हो मेरी उसे अनसुना करने की
नाराज़ हो कर चुप सी हो जाती है,
पर जब मानो उसकी हर बात
पुराने पर्दो में हे जान आती है,
घर में मेरे दिवाली कहाँ मनाई जाती है,

एक तन्हाई मेरी साथी है
रंगीन बोतलों के बुलबुले से परे एक नए नशे में ले जाती है,

वो कहते  हैं की अँधेरा उन्हें डराता है
काला साया उन्हें सताया करता है
पागल है वो जो इतनी सी भी बात नहीं समझ पाते हैं
रात में रूह आराम पाती  है,
हरे ज़ख्मो पर मरहम बनकर ठंडक पहुंचाती है

हैं  हूँ अजीब इसलिए दुनिया से परे भी एक दुनिया बस्ती है
क्या बताओ दोस्त ये कड़वी हकीकतों से सस्ती है
घर में मेरे दिवाली कहाँ मनाई जाती है