मैं कहाँ से हिम्मत करूँगा
की मुझे तो डरने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से लडूंगा
की मुझे तो भागने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से कुछ कहूंगा
कुछ बोलने लायक छोड़ा भी है
की मुझे तो चुप रहने की आदत हो गयी है
मैं कौन से कल की उम्मीद में पलूँगा
की मुझे तो हारने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से जीऊँगा
की मुझे तो मरने की आदत हो गयी है
की मुझे तो डरने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से लडूंगा
की मुझे तो भागने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से कुछ कहूंगा
कुछ बोलने लायक छोड़ा भी है
की मुझे तो चुप रहने की आदत हो गयी है
मैं कौन से कल की उम्मीद में पलूँगा
की मुझे तो हारने की आदत हो गयी है
मैं कहाँ से जीऊँगा
की मुझे तो मरने की आदत हो गयी है