Sunday, August 13, 2017

Yeh Raat

रात हर गुनाह को छुपाती है
रात हे तो तन्हाई की साथी है
रात ख़ामोशी की आवाज़ है
रात तारो की बारात है
चौकीदारी करता चाँद है
रात है तो तेरी मेरी मुलाकात है

जब जिस्म बाहों में पिघलते हैं
आहों में आहें भर्ती हैं
सुर्खी सूखे लवों की तड़पती है
रूहें मचलती हैं तड़पती यूँ बिखरती हैं
रात की भी हाय हाय निकलती है
हमसे तारे क्या चांदनी खुद भी जलती है

कहीं कोई जंगली आग भड़कती है
खौलते हुए लाहो को ठंडक मिलती है
जब दुनिया नहीं सताती है
फिर चाहे दो पल के लिए सही मेरी रूह कुछ आराम पाती है

मैं जाकर नींद की गोद में गिरता हूँ
भूले हुए टूटे हुए सपने बुनता  हूँ
जब यूँही बिन बात के हस्ता था
भोज के नाम पर स्कूल का बस्ता था
क्या बताओं यारों तब जीना कितना सस्ता था
बड़ों की बाते जब पल्ले नहीं पड़ती थी
और एक हसीन सी पारी झूला झुलाया करती थी
हर रात में, बीती हुई याद में
मेरी जान सिसकती है
पीछे जाने के लिए कसकती है
मैं कसकर उसे खिंच लेता हूँ
और तकिये  में छुप कर  रो लेता हूँ

रात मेरी ासोँ पर पर्दा करती है
बिन- कहे सब कुछ समझ लेती है
कुछ खुला सा खुद को पाटा हूँ , एक रात हे है जो बंधनो में नहीं जकड़ती है
मेरी लॉ न जाने कितनी हे बार लड़ती, मरती, कटती है
गम इस बात का है दोस्तों सांसें चल रही हैं अब तक वार्ना ये नागिन तो हर दम हे दस्ती है

रात ह्यै तो सुकून है
रात में जुगनुओं की गुफ्तगू है
जाम से नशा होता नहीं
रात के नशे में हम चूर हैं



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