अंधेरे पर विजय का गान
जब धरती पर पाप छाया,
मानव तन, छाया से घबराया।चारों ओर हाहाकार मचा,
दरिद्रता ने अपना डंका बजाया।
इंसानियत मर गयी थी,
तड़पती धरती ने पुकार मची थी।नारायण ने सुनी पुकार,
किया धरती का उद्धार।
आकाशवाणी सुन कंस कांपा,
काल का डर उसके मन में छाया।अंधेरे में उसने अपना भूल दिया,
देवकी की संतान मारने का कसम खा लिया।
समय था गंभीर, सब इंतजार में,
वो क्षण था परीक्षा का, वो क्षण था क्रांति का।
टूट गयी बेड़ियाँ, खुल गए कारागृह के ताले,
बरसा सावन, गरजी दामिनी, जगमगाए धरती-आकाश के हाले।
विराजमान हुए वासुदेव, फन फैलाए नाग,
यमुना नदी ने चरण धोए, बहाए प्रेम के झाग।
धरती-आकाश मंगल गान गाए,
ईश्वर के जन्म पर जयकार लगाए।
माया का अंत, काल की पुकार,
कंस का समय हुआ निकट, विनाश की हुई तैयारी चारों तरफ।
यशोदा रूठी, नन्दलाल मनाए,
अठखेलियाँ करे, मोहन का मुख निहारे।
मंद-मंद मुस्कान, लीलाएँ अपार,
राधा संग रास रचाए, जग को मोहे प्यार।
गोवर्धन को उठाकर, इंद्र को सबक सिखाए,
गोवर्धन पूजा की रीति, गाँव-गाँव फैलाए।
कंस का अत्याचार, हुआ सब बेकार,
अखाड़े में उतरे कृष्ण, किया कंस का संहार।
अंधेरा मिटा, मुक्ति मिली,
जग में गूंजा जय श्री कृष्णा का गीत नया।
यह कथा है कृष्ण जन्माष्टमी की,
प्रेम, विजय और भक्ति की।
हर घर में दीप जले, मनाए जाए यह त्यौहार,
कंस के अत्याचार का हो नाश, यही है हमारी पुकार।