Saturday, April 11, 2020

Ghar Pe Hai

जबसे तू और मै घर पर है
कम पड़ती है उँगलियाँ की इतने तारे अब शभ  पर है
परियो से लगते है दिन की परिंदे चहचहाते नभ पर है
जबसे तू और मै घर पर है

साँस ले रही है हाफति ज़िन्दगी
अब जब कटता वक़्त पल-पल है
कलम-कागज़ भी तरसते नहीं
ख्याल जो उपजते हर दम है
जबसे तू और मै घर पर है


सुनते है ख़ामोशी के क़िस्से
पुराणी आदते करती छन-छन है
जश्न मनाती है तन्हाई,खिलखिलाकर हस्ता हूँ मैं
लौट आया वो  बचपन है
जबसे तू और मै घर पर है