Saturday, November 23, 2019

Wo Kahan Hai

वो कहाँ है जो मुझे अपना अज़ीज़ बताती थी 
वो कहाँ है जो  मुझसे कुछ नहीं छुपाती थी 
हर हाल में जो मेरे साथ खडी थी 
हिम्मत बनकर मेरे जूनून के लये लड़ी थी 
उन रास्तो को मैं पीछे छोड़ आया हूँ 
फ़रेबियो से मै मुँह मोड़ आया हूँ 
अब जो वो मुझसे रूठ गयी है 
खींचती हुई से ये दूर टूट गयी ही 
कैद है वो मेरे ज़ेहन में ,हर पल में 
वो आज में है मेरे कल में 
गैरो के रिश्तो में खुद को खोया करता हूँ 
तुम्हे क्या मालूम मै किस कदर रोया करता हूँ 
कभी किया था हालातो को मजबूर हमने ,आज खुद हालातो के आगे मजबूर है 
किसी है ये कश्मकश की पास होकर भी कितने दूर है 
तुम नहीं हो ! नहीं हो ! ये आइना मुझे कहता है 
पर इस बच्चे से दिल का क्या करू जो तेरी धुन में रहता है 
मेरे सब्र के बांध टूटने लगे है 
लौट आओ तुम की नामकीनियत के झरने फूटने लगे है