वो कहाँ है जो मुझे अपना अज़ीज़ बताती थी
वो कहाँ है जो मुझसे कुछ नहीं छुपाती थी
हर हाल में जो मेरे साथ खडी थी
हिम्मत बनकर मेरे जूनून के लये लड़ी थी
उन रास्तो को मैं पीछे छोड़ आया हूँ
फ़रेबियो से मै मुँह मोड़ आया हूँ
अब जो वो मुझसे रूठ गयी है
खींचती हुई से ये दूर टूट गयी ही
कैद है वो मेरे ज़ेहन में ,हर पल में
वो आज में है मेरे कल में
गैरो के रिश्तो में खुद को खोया करता हूँ
तुम्हे क्या मालूम मै किस कदर रोया करता हूँ
कभी किया था हालातो को मजबूर हमने ,आज खुद हालातो के आगे मजबूर है
किसी है ये कश्मकश की पास होकर भी कितने दूर है
तुम नहीं हो ! नहीं हो ! ये आइना मुझे कहता है
पर इस बच्चे से दिल का क्या करू जो तेरी धुन में रहता है
मेरे सब्र के बांध टूटने लगे है
लौट आओ तुम की नामकीनियत के झरने फूटने लगे है