इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
ये तो बंजर ज़मीन पर भी गुल खिलाया करती है
सुध -बुध खोकर खुद को खुद से मिलाया करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
अवल्लेया इश्क़ रब्ब बनकर ज़मीन पर उतरता है
सोहणे यार के दीदार सदा सामने रहा करता है
ये वो ईबादत है जो सब कुछ खोकर हासिल हुआ करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
की इश्क़ वो नहीं जो दिवाना कर दे
सर चढ़ कर के आवारा कर दे
इश्क़ तो वो है जो हद्द कर दे
दुनियादारी की दीवारे गिरा दे
अपनी मौजूदगी साबित कर दे
इश्क़ तो वो है जो हर ख़ामोशी बयां किया करती है
नज़रों की अपनी भाषा बनाया करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
इस लाइलाज रोग की दवा भी कहाँ मिला करती है
पर लग जाये जो ये रोग तो दुआ बना करती है
दर्द-इ-उल्फत बयां किया करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो रब्ब से मिलाया करती है
ये तो बंजर ज़मीन पर भी गुल खिलाया करती है
सुध -बुध खोकर खुद को खुद से मिलाया करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
अवल्लेया इश्क़ रब्ब बनकर ज़मीन पर उतरता है
सोहणे यार के दीदार सदा सामने रहा करता है
ये वो ईबादत है जो सब कुछ खोकर हासिल हुआ करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
की इश्क़ वो नहीं जो दिवाना कर दे
सर चढ़ कर के आवारा कर दे
इश्क़ तो वो है जो हद्द कर दे
दुनियादारी की दीवारे गिरा दे
अपनी मौजूदगी साबित कर दे
इश्क़ तो वो है जो हर ख़ामोशी बयां किया करती है
नज़रों की अपनी भाषा बनाया करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो इंसान को रब्ब से मिलाया करती है
इस लाइलाज रोग की दवा भी कहाँ मिला करती है
पर लग जाये जो ये रोग तो दुआ बना करती है
दर्द-इ-उल्फत बयां किया करती है
इश्क़ वो कड़ी है जो रब्ब से मिलाया करती है